रस की परिभाषाएँ और उनके उदाहरण
[1]- `श्रंगार रस - जब काव्य में नायक - नायिका का मिलन होता है तथा उनके बीच रति या प्रेम होता है तो उसे श्रंगार रस कहते हैं । इसे रसराज भी कहते है । इसका स्थायीभाव - रति, आलंबन विभाव - नायक - नायिका, उद्दीपन विभाव - आलंबन का सौंदर्य, उसकी चेष्टाएँ, प्रकृति , उपवन, मनोरम स्थल तथा कुछ अन्य सानुकूल चेष्टाएँ ।
श्रंगार रस के भेद- श्रंगार रस के दो भेद होते हैं----
[क]- संयोग श्रंगार- नायक और नायिका के मिलन या संयोग में आपसी रति को संयोग श्रंगार कहते हैं ।
उदाहरण - राम को रूप निहारत जानकी कंगन के नाग में परछाहीं ।
याति सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही पल टारति नांहीं।।
[ख ]- वियोग श्रंगार -एक - दूसरे के प्रेम में डूबे रहने वाले नायक -नायिका के मिलन में अवरोध, अभाव, या पूर्ण मिलन की यादें वियोग श्रंगार कहलता है ।
जैसे - तन -मन सेज जरै अगि दाहू । सब कंह चंद भयउ मोहि राहू ।
[2]- हास्य रस - हास्य चेष्टाएँ, विकृति, रूप वेशभूषा,आकार और वाणी आदि देखकर 'हास' नामक मनोविकार के परिपुष्ट होने पर हास्य रस की उत्पत्ति होती है।
उदाहरण - 'विंध्य के वासी उदासी तपोव्रत धारी महा बिनु नारि दुखारे।
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा, सुनि भए मुनिवृंद सुखारे ।
ह्वे हैं शीला सब चन्द्रमुखी,परसे पद-मंजुल कंज तिहारे ।
कीन्हीं भली रघुनायक जू करुना करि कानन को पग धारे।।
[3]- करुण रस- 'शोक' नामक स्थायीभाव, विभाव अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से करुण रस की निष्पत्ति होती है । शोक एवं दुख की दशाओं के वर्णन में करुण रस होता है ।
उदाहरण - " हा! वृद्धा के अतुल धन हा ! वृद्धता के सहारे ।
हा ! प्राणों के परमप्रिय हा ! एक मेरे दुलारे ।
हा! शोभा के सप्त सम हा ! रूप लावण्य हारे ।
हा ! बेटा हा ! हृदय धन हा ! नेत्र तारे हमारे । "
यहाँ स्थायीभाव -शोक, आश्रय-यशोदा आलंबन विभाव- श्रीकृष्ण,उद्दीपन विभाव- श्रीकृष्ण की प्रिय वस्तुएँ,अनुभाव-मूर्छा आना,अश्रु बहना ,संचारीभाव - चिंता,दैन्य, विषाद आदि के संयोग से करुण रस की निष्पत्ति हुई है ।
[4]- रौद्र रस- व्यक्ति के क्रोध की मुद्रा में रौद्र रस की निष्पत्ति होती है ।
उदाहरण - रे नृप बालक काल बस, बोलत तोहि न संभार।
धनुही सम त्रिपुरारि धनु, विदिति सकल संसार ।।
यहाँ स्थायीभाव -क्रोध, आश्रय परशुराम, आलंबन- शिव धनुष,उद्दीपन-शिव धनुष का अपमान,अपराधी,लक्ष्मण की चेष्टाएँ, अनुभाव-परशुराम का क्रोधित होना,आखें लाल होना,नथुने भौंहें फड़कना, बाहों का उठ जाना, गर्जन- तर्जन आदि ।
[5]- वीर रस- उत्साह की अतिशयता मे वीर रस होता है। यह उत्साह,युद्ध, दान,दया, धर्म आदि के लिए होता है। उदाहरण - " रे अश्वसेन! तेरे अनेक वंशज हैं छिपे नरों में भी,
सीमित वन में ही नहीं,बहुत बस्ते पुर- ग्राम घरों में भी।
ये नर भुजंग मानवता का, पथ कठिन बहुत कर देते है ।
प्रतिबल के वध के लिए नीच, सहाय्य सर्प का लेते है । "
यहाँ - स्थायीभाव - युद्ध सबंधी उत्साह, आश्रय - वीर पुरुष कर्ण, आलंबन - सर्प और पांडव सेना,उद्दीपन - सर्प की सहायता न लेने के लिए प्रतिबद्ध होना, अनुभाव - कर्ण का अंग-अंग फड़कना, संचारीभाव - गर्व, जोश,स्मृति आदि ।
[6]- भयानक रस- भय की अधिकता के कारण भयानक रस की निष्पत्ति होती है ।
उदाहरण - " भए भुवन घोर, कठोर रव रवि बाजि ताजी मारग चले ।
चिक्करहि दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरम कलमले ।।
यहाँ स्थायीभाव-भय, आलंबन भाय पैदा करने वाले साँप, सिंह आग का लगना, उद्दीपन-भय उत्पन्न करने की चेष्टाएँ, अनुभाव- स्वरभंग होना,काँपना आदि, संचारी भाव- ग्लानि,शंका,त्रास आवेश आदि ।
[7]- वीभत्स रस- घृणित वस्तुओं को देखकर अथवा उनके बारे में सुनकर मन में जो घृणा उत्पन्न होती है,उससे वीभत्स रस की निष्पत्ति होती है।
उदाहरण - ओझरी की झोरी कांधे आंतनि की सेल्ही बांधे,
मूड के कमंडल खपर किए कोरिके ।
जोगिन झुटुन झुंड-झुंड बनी तापसी- सी,
तीर तीर बैठी सो समरि सरि खोरि के।
सोनित सो सानि-सानि गुदा खात सतुआ से,
प्रेत एक पियत बहोरि घोरी-घोरि के ।
तुलसी नेटल भूत,साथ लिए भूतनाथ,
हेरि -हेरि हंकेत है हाथ जोरी-जोरि के ।
यहाँ स्थायीभाव-घृणा, आश्रय- जिसके मन में घृणा उत्पन्न हो, आलंबन- घृणित वस्तु श्मशान आदि,उद्दीपन-दुर्गंध,कीड़े पड़ना,गुदा खाना आदि, अनुभाव- नाक मुँह सिकोड़ना,छि; छि; करना,थूकना आदि,संचारीभाव-शंका,ग्लानि,त्रास आदि ।
[8]- अदभुत रस- जिन वस्तुओं का वर्णन सुनकर अथवा उन्हें देखकर आश्चर्य होता है, वहाँ अदभुत रस की निष्पत्ति होती है ।
उदाहरण - " क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह,है क्या ही निस्तब्ध निशा,
है स्वच्छंद-सुमंद गंध वह,निरानंद है कौन दिशा ?
बंद नहीं अब भी चलते हैं, नियति- नटी के कार्य कलाप,
पर कितने एकांत भाव से कितने शांत और चुपचाप। "
यहाँ स्थायीभाव-विस्मय, आश्रय- विस्मित दर्शक, आलंबन- विस्मयजनक वस्तु,उद्दीपन-स्वच्छ चाँदनी,शांत रात,चारों ओर छाई नीरवता, अनुभाव- रोमांच, आश्चर्य व्यक्त करना, संचारीभाव-मोह ।
[9]- शांत रस- जब किसी कविता को पढ़कर या कोई दृश्य देखकर चित्त शांत होता है तब वहाँ शांत रस की निष्पत्ति होती है ।
उदाहरण- " बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहनि मूरति सांवरि सूरति नैना बने विशाल,
अधर-सुधा रस मुरली राजति उर बैजंती माल
छुद्र घंटिका कटि तट शोभित नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई भगत बछल गोपाल।।
यहाँ स्थायीभाव-निर्वेद, आश्रय- शांत चित्त वाला कोई व्यक्ति,आलंबन विभाव - कृष्ण का सौंदर्य,उद्दीपन -इंद्रियो की आसक्ति, अनुभाव - आराध्य के चरणों में रति [प्रेम ],संचारीभाव -मति ।
[10] - वात्सल्य रस - छोटे शिशु, पुत्र, शिष्य आदि के प्रति जब प्रेम प्रकट किया जाता है तब वात्सल्य रस की व्युत्पत्ति होती है ।
उदाहरण - " किलकत कान्ह घुटरूवन आवत। मनिमय कनक नन्द कै आँगन बिंब पकरिबै धावत। कबहु निरखि हरि आपु छाँह कौ, कर सौं पकरन चाहत। किलकि हंसत राजत दुवै दतियां,पुनि -पुनि तिहिं अवगाहत ।
बाल - दसा - सुख निरखि जसोदा, पुनि -पुनि नन्द बुलावति ।
अँचरा तर लै ढाँकि, 'सूर' के प्रभु कौ दुध पियावति।।
यहाँ स्थायीभाव वात्सल्य, आश्रय-यशोदा, आलंबन-बालक कृष्ण, उद्दीपन- घुटनों के बल चलना,हँसना और मुसकराना आदि, अनुभाव- पुलकित होना, दूध पिलाना, संचारीभाव-हर्ष,उत्सुकता आदि।
अभ्यास प्रश्न
[1]- रस की परिभाषा दीजिए।
[2]- रस के कितने अंग होते हैं ?
[3]- रस के कुल कितने भेद होते हैं?
[4]- किस रस को रसराज कहा जाता है?
[5]- मुख्य रसों की संख्या नौ है, पर दसवां रस किसे कहा जाता है?
[6]- नीचे दिये गए स्थायीभावों से संबंधित रसों के नाम लिखिए-
1- रति -------------------------------------------------
2-उत्साह ----------------------------------------------
3- निर्वेद ----------------------------------------------
4- हास ------------------------------------------------
5- विस्मय --------------------------------------------
[7]- नीचे दिए गए रसों के स्थायीभाव लिखिए-
1- करुण ----------------------------------------------
2- वीभत्स --------------------------------------------
3- रौद्र ------------------------------------------------
4- भयानक-------------------------------------------
5- वीर ------------------------------------------------
[8]- सभी रसों के दो-दो उदाहरण खोजकर लिखिए ।
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[1]- `श्रंगार रस - जब काव्य में नायक - नायिका का मिलन होता है तथा उनके बीच रति या प्रेम होता है तो उसे श्रंगार रस कहते हैं । इसे रसराज भी कहते है । इसका स्थायीभाव - रति, आलंबन विभाव - नायक - नायिका, उद्दीपन विभाव - आलंबन का सौंदर्य, उसकी चेष्टाएँ, प्रकृति , उपवन, मनोरम स्थल तथा कुछ अन्य सानुकूल चेष्टाएँ ।
श्रंगार रस के भेद- श्रंगार रस के दो भेद होते हैं----
[क]- संयोग श्रंगार- नायक और नायिका के मिलन या संयोग में आपसी रति को संयोग श्रंगार कहते हैं ।
उदाहरण - राम को रूप निहारत जानकी कंगन के नाग में परछाहीं ।
याति सबै सुधि भूलि गई कर टेकि रही पल टारति नांहीं।।
[ख ]- वियोग श्रंगार -एक - दूसरे के प्रेम में डूबे रहने वाले नायक -नायिका के मिलन में अवरोध, अभाव, या पूर्ण मिलन की यादें वियोग श्रंगार कहलता है ।
जैसे - तन -मन सेज जरै अगि दाहू । सब कंह चंद भयउ मोहि राहू ।
[2]- हास्य रस - हास्य चेष्टाएँ, विकृति, रूप वेशभूषा,आकार और वाणी आदि देखकर 'हास' नामक मनोविकार के परिपुष्ट होने पर हास्य रस की उत्पत्ति होती है।
उदाहरण - 'विंध्य के वासी उदासी तपोव्रत धारी महा बिनु नारि दुखारे।
गौतम तीय तरी तुलसी सो कथा, सुनि भए मुनिवृंद सुखारे ।
ह्वे हैं शीला सब चन्द्रमुखी,परसे पद-मंजुल कंज तिहारे ।
कीन्हीं भली रघुनायक जू करुना करि कानन को पग धारे।।
[3]- करुण रस- 'शोक' नामक स्थायीभाव, विभाव अनुभाव और संचारी भावों के संयोग से करुण रस की निष्पत्ति होती है । शोक एवं दुख की दशाओं के वर्णन में करुण रस होता है ।
उदाहरण - " हा! वृद्धा के अतुल धन हा ! वृद्धता के सहारे ।
हा ! प्राणों के परमप्रिय हा ! एक मेरे दुलारे ।
हा! शोभा के सप्त सम हा ! रूप लावण्य हारे ।
हा ! बेटा हा ! हृदय धन हा ! नेत्र तारे हमारे । "
यहाँ स्थायीभाव -शोक, आश्रय-यशोदा आलंबन विभाव- श्रीकृष्ण,उद्दीपन विभाव- श्रीकृष्ण की प्रिय वस्तुएँ,अनुभाव-मूर्छा आना,अश्रु बहना ,संचारीभाव - चिंता,दैन्य, विषाद आदि के संयोग से करुण रस की निष्पत्ति हुई है ।
[4]- रौद्र रस- व्यक्ति के क्रोध की मुद्रा में रौद्र रस की निष्पत्ति होती है ।
उदाहरण - रे नृप बालक काल बस, बोलत तोहि न संभार।
धनुही सम त्रिपुरारि धनु, विदिति सकल संसार ।।
यहाँ स्थायीभाव -क्रोध, आश्रय परशुराम, आलंबन- शिव धनुष,उद्दीपन-शिव धनुष का अपमान,अपराधी,लक्ष्मण की चेष्टाएँ, अनुभाव-परशुराम का क्रोधित होना,आखें लाल होना,नथुने भौंहें फड़कना, बाहों का उठ जाना, गर्जन- तर्जन आदि ।
[5]- वीर रस- उत्साह की अतिशयता मे वीर रस होता है। यह उत्साह,युद्ध, दान,दया, धर्म आदि के लिए होता है। उदाहरण - " रे अश्वसेन! तेरे अनेक वंशज हैं छिपे नरों में भी,
सीमित वन में ही नहीं,बहुत बस्ते पुर- ग्राम घरों में भी।
ये नर भुजंग मानवता का, पथ कठिन बहुत कर देते है ।
प्रतिबल के वध के लिए नीच, सहाय्य सर्प का लेते है । "
यहाँ - स्थायीभाव - युद्ध सबंधी उत्साह, आश्रय - वीर पुरुष कर्ण, आलंबन - सर्प और पांडव सेना,उद्दीपन - सर्प की सहायता न लेने के लिए प्रतिबद्ध होना, अनुभाव - कर्ण का अंग-अंग फड़कना, संचारीभाव - गर्व, जोश,स्मृति आदि ।
[6]- भयानक रस- भय की अधिकता के कारण भयानक रस की निष्पत्ति होती है ।
उदाहरण - " भए भुवन घोर, कठोर रव रवि बाजि ताजी मारग चले ।
चिक्करहि दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरम कलमले ।।
यहाँ स्थायीभाव-भय, आलंबन भाय पैदा करने वाले साँप, सिंह आग का लगना, उद्दीपन-भय उत्पन्न करने की चेष्टाएँ, अनुभाव- स्वरभंग होना,काँपना आदि, संचारी भाव- ग्लानि,शंका,त्रास आवेश आदि ।
[7]- वीभत्स रस- घृणित वस्तुओं को देखकर अथवा उनके बारे में सुनकर मन में जो घृणा उत्पन्न होती है,उससे वीभत्स रस की निष्पत्ति होती है।
उदाहरण - ओझरी की झोरी कांधे आंतनि की सेल्ही बांधे,
मूड के कमंडल खपर किए कोरिके ।
जोगिन झुटुन झुंड-झुंड बनी तापसी- सी,
तीर तीर बैठी सो समरि सरि खोरि के।
सोनित सो सानि-सानि गुदा खात सतुआ से,
प्रेत एक पियत बहोरि घोरी-घोरि के ।
तुलसी नेटल भूत,साथ लिए भूतनाथ,
हेरि -हेरि हंकेत है हाथ जोरी-जोरि के ।
यहाँ स्थायीभाव-घृणा, आश्रय- जिसके मन में घृणा उत्पन्न हो, आलंबन- घृणित वस्तु श्मशान आदि,उद्दीपन-दुर्गंध,कीड़े पड़ना,गुदा खाना आदि, अनुभाव- नाक मुँह सिकोड़ना,छि; छि; करना,थूकना आदि,संचारीभाव-शंका,ग्लानि,त्रास आदि ।
[8]- अदभुत रस- जिन वस्तुओं का वर्णन सुनकर अथवा उन्हें देखकर आश्चर्य होता है, वहाँ अदभुत रस की निष्पत्ति होती है ।
उदाहरण - " क्या ही स्वच्छ चाँदनी है यह,है क्या ही निस्तब्ध निशा,
है स्वच्छंद-सुमंद गंध वह,निरानंद है कौन दिशा ?
बंद नहीं अब भी चलते हैं, नियति- नटी के कार्य कलाप,
पर कितने एकांत भाव से कितने शांत और चुपचाप। "
यहाँ स्थायीभाव-विस्मय, आश्रय- विस्मित दर्शक, आलंबन- विस्मयजनक वस्तु,उद्दीपन-स्वच्छ चाँदनी,शांत रात,चारों ओर छाई नीरवता, अनुभाव- रोमांच, आश्चर्य व्यक्त करना, संचारीभाव-मोह ।
[9]- शांत रस- जब किसी कविता को पढ़कर या कोई दृश्य देखकर चित्त शांत होता है तब वहाँ शांत रस की निष्पत्ति होती है ।
उदाहरण- " बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहनि मूरति सांवरि सूरति नैना बने विशाल,
अधर-सुधा रस मुरली राजति उर बैजंती माल
छुद्र घंटिका कटि तट शोभित नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई भगत बछल गोपाल।।
यहाँ स्थायीभाव-निर्वेद, आश्रय- शांत चित्त वाला कोई व्यक्ति,आलंबन विभाव - कृष्ण का सौंदर्य,उद्दीपन -इंद्रियो की आसक्ति, अनुभाव - आराध्य के चरणों में रति [प्रेम ],संचारीभाव -मति ।
[10] - वात्सल्य रस - छोटे शिशु, पुत्र, शिष्य आदि के प्रति जब प्रेम प्रकट किया जाता है तब वात्सल्य रस की व्युत्पत्ति होती है ।
उदाहरण - " किलकत कान्ह घुटरूवन आवत। मनिमय कनक नन्द कै आँगन बिंब पकरिबै धावत। कबहु निरखि हरि आपु छाँह कौ, कर सौं पकरन चाहत। किलकि हंसत राजत दुवै दतियां,पुनि -पुनि तिहिं अवगाहत ।
बाल - दसा - सुख निरखि जसोदा, पुनि -पुनि नन्द बुलावति ।
अँचरा तर लै ढाँकि, 'सूर' के प्रभु कौ दुध पियावति।।
यहाँ स्थायीभाव वात्सल्य, आश्रय-यशोदा, आलंबन-बालक कृष्ण, उद्दीपन- घुटनों के बल चलना,हँसना और मुसकराना आदि, अनुभाव- पुलकित होना, दूध पिलाना, संचारीभाव-हर्ष,उत्सुकता आदि।
अभ्यास प्रश्न
[1]- रस की परिभाषा दीजिए।
[2]- रस के कितने अंग होते हैं ?
[3]- रस के कुल कितने भेद होते हैं?
[4]- किस रस को रसराज कहा जाता है?
[5]- मुख्य रसों की संख्या नौ है, पर दसवां रस किसे कहा जाता है?
[6]- नीचे दिये गए स्थायीभावों से संबंधित रसों के नाम लिखिए-
1- रति -------------------------------------------------
2-उत्साह ----------------------------------------------
3- निर्वेद ----------------------------------------------
4- हास ------------------------------------------------
5- विस्मय --------------------------------------------
[7]- नीचे दिए गए रसों के स्थायीभाव लिखिए-
1- करुण ----------------------------------------------
2- वीभत्स --------------------------------------------
3- रौद्र ------------------------------------------------
4- भयानक-------------------------------------------
5- वीर ------------------------------------------------
[8]- सभी रसों के दो-दो उदाहरण खोजकर लिखिए ।
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